आर्ष योगप्रदिपिका – Arsh yogpradipika By Brahmamuni Privrajak

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श्री स्वामी ब्रह्ममुनि जी सचमुच ब्रह्मज्ञान के मननकर्ता हैं । वेद और आर्ष ग्रन्थों के स्वाध्याय का स्वाद वे अकेले नहीं लेते , प्रत्युत दूसरों को भी उसमें सम्मिलित करते हैं । इससे पूर्व स्वामीजी महाराज तैंतीस ग्रन्थों द्वारा अपने स्वाध्याय का रसास्वादन जनता को करा चुके हैं । यह चौंतीसवां ग्रन्थ योग विषयक है । स्वामी जी ने इस ग्रन्थ में महर्षि पतंजलि जी के योगसूत्रों का अर्थ और उनकी व्याख्या के साथ सूत्रों पर सर्वसम्मत् प्रामाणिक व्यासकृत भाष्य का भी भाषानुवाद दे दिया

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श्री स्वामी ब्रह्ममुनि जी सचमुच ब्रह्मज्ञान के मननकर्ता हैं । वेद और आर्ष ग्रन्थों के स्वाध्याय का स्वाद वे अकेले नहीं लेते , प्रत्युत दूसरों को भी उसमें सम्मिलित करते हैं । इससे पूर्व स्वामीजी महाराज तैंतीस ग्रन्थों द्वारा अपने स्वाध्याय का रसास्वादन जनता को करा चुके हैं । यह चौंतीसवां ग्रन्थ योग विषयक है । स्वामी जी ने इस ग्रन्थ में महर्षि पतंजलि जी के योगसूत्रों का अर्थ और उनकी व्याख्या के साथ सूत्रों पर सर्वसम्मत् प्रामाणिक व्यासकृत भाष्य का भी भाषानुवाद दे दिया

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Weight 0.21 kg
Dimensions 21.59 × 13.97 cm
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