• गीत भण्डार – Geet Bhandar By Nandlal Vanprasthi

    प्रस्तुत इन गीतों में मानवीय मूल्य हमें अनमोल सन्देश दे रहे हैं मनुष्य को आवश्यक है कि चुन – चुन कर अपने दोषों को त्यागता जा और संकल्पपूर्वक एक – एक सद्गुण को धारण करता जाये । यदि गी में मानवीय मूल्य न हों तो वह व्यर्थ हैं । यहां किसी अनाम कवि की पंक्तियां ध्यान देने योग्य हैं चाहे जितना रूप भरा हो , गन्ध नहीं तो सुमन व्यर्थ है । चाहे जीवन – भर मिलना हो , स्नेह नहीं तो मिलना व्यर्थ है । उमड़ पड़ा न दर्द देख जो सुन्दरतम् वह नयन व्यर्थ है । छू न सका जो हृदय किसी का , उस रचना का सृजन व्यर्थ है ।। हृदय कभी न जिसे स्वीकारा , उसके सम्मुख नमन व्यर्थ है । डाली – डाली जहां न पुष्पित , उसको कहना चमन व्यर्थ है ।

    प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे भजन हैं जो प्रभात फेरी या सभा – समारो में अकेले अथवा सामूहिक रूप से गाये जा सकते हैं । इन्हें लोकप्रि धुनों पर भी गाया जा सकता है । इसके पहले भाग में भगवद् – भक्ति के गीत हैं , जिन्हें छात्र – छात्रा स्त्री – पुरूष , पारिवारिक या सामाजिक सत्संग में गा सकें । दि दयानन्द की महिमा के कुछ गाने अलग से सम्मिलित किये गए है राष्ट्रीय गीतों को भी समुचित स्थान दिया गया है । हास्य – व्यंग के कु ऐसे मजेदार गीत भी इस संकलन में हैं , जो मनोरंजन भी करेंगे उत्प्रेरक भी सिद्ध होंगे । अन्त में ” जागरण ” का बोध देने वाले गी को रखा गया है । वैदिक विचारधारा के प्रचार में इन गीतों को सारे विश्व गाया – सुनाया जाये , इस आग्रह के साथ यह ” गीत भण्डार ” आप हाथों में सौंपा जा रहा है ।

  • Agnihotra Sarvaswa – अग्निहोत्र सर्वस्व

    वैदिक संस्कृति को यदि एक शब्द में उपसंहृत करना हो , तो वह शब्द है- यज्ञ । पौर्णमास से लेकर अश्वमेधपर्यन्त यज्ञों तक का वितान इसका सूचक है । फिर इन यज्ञों के वितान को भी उपसंहृत करके पञ्चमहायज्ञों में समेट दिया गया है । भगवान् मनु का आदेश है कि ‘ पञ्चैताँस्तु महायज्ञान् यथाशक्ति न . हापयेत् ।

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