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Bharat Vikhandan – भारत विखण्डन Paperback (Rajiv Malhotra Aravindan Neelkandan)
भारत विखण्डन एक पुस्तक है जो भारत और इसकी विविध संस्कृति के भीतर अव्यक्त क्षमता के पक्ष में बोलती है। यह तर्क देता है कि तीन प्रमुख पश्चिमी संस्कृतियों द्वारा देश की अखंडता को पतला किया जा रहा है और इस प्रक्रिया के परिणाम पर चर्चा करता है। यह पुस्तक प्रसिद्ध द्रविड़ आंदोलन की उत्पत्ति की जांच करती है जिसने हमारे देश की विशाल संस्कृति को आकार दिया, जबकि दलित पहचान और इसकी वर्तमान स्थिति पर भी ध्यान दिया। यह भी कहा गया है कि पुस्तक मुख्य रूप से स्वतंत्र भारत के अधीनता, निगरानी और तोड़फोड़ पर केंद्रित है। भारत विखण्डन आधुनिक भारत में बदलते रुझानों को बारीकी से देख रहा है और इसके विकास और अंततः कमजोर पड़ने के कारणों पर सवाल उठा रहा है। हमारी प्राथमिकताओं और निष्ठाओं पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करते हुए राष्ट्र के लिए एक वेकअप कॉल है। इसकी ऐतिहासिक और संघर्षपूर्ण सामग्री के लिए प्रशंसा की गई है, जबकि उन कठोर सच्चाइयों से इनकार करने से इनकार किया जाता है, जिन पर चर्चा करने की आवश्यकता है।
₹450.00 -
भूमिका भास्कर( दो भागो में ) – Bhumika Bhaskar (In two parts) Part- 1
महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने वेदभाष्य निर्माण से पूर्व एक विस्तृत भूमिका की रचना की जिसमें अपने वेदभाष्य के उद्देश्यों का स्पष्टीकरण किया । इस ग्रन्थ में ऋषि ने अपने सभी वेदविषयक सिद्धान्तों का विशद् निरूपण किया है । इसमें लगभग पैंतीस शीर्षकों के अन्दर वेद के प्रमुख प्रतिपाद्य पर प्रभूत प्रकाश डाला गया है जिन में से आगे लिखे विषय विशेष उल्लेखनीय – हैं – वेदोत्पत्ति , वेदनित्यत्व , वेदविषय , वेदसंज्ञा , ब्रह्मविद्या , वेदोक्तधर्म , सृष्टिविद्या , पृथिवी आदि का भ्रमण , गणित , मुक्ति , पुनर्जन्म , वर्णाश्रम , पञ्चमहायज्ञ , ग्रन्थप्रामाण्य , वेद के ऋषि – देवता – छन्द – अलंकार – व्याकरण | – – । स्वामी विद्यानन्द सरस्वती आर्यसमाज के संन्यासी विद्वद्वर्ग में अग्रगण्य थे । उनकी लेखनी में ओज तथा प्रवाह था , प्रतिभा के धनी और योजनाबद्ध लेखन कार्य करने की प्रवृत्ति से पूरिपूर्ण थे । ऋषि दयानन्द की उत्तराधिकारिणी परोपकारिणी सभा का सुझाव था कि ऋषि के ग्रन्थों के उक्त वचनों का स्पष्टीकरण और विशद् व्याख्याएँ तैयार कराकर प्रकाशित की जाएं । इसीलिए स्वामी जी ने इस कार्य को करने का संकल्प किया और ‘ भूमिकाभास्कर की संरचना की ।
₹1,000.00 -
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भाषा का इतिहास – Bhasha Ka Itihas
प्रस्तुत ग्रन्थ में भाषा – विद्या-विषयक प्राचीन भारतीय पक्ष का दिग्दर्शन कराया गया है। इस तुलनात्मक अध्ययन से पाठकों का ज्ञान बहुत परिमार्जित हो जाएगा।
भारतीय सत्य इतिहास को प्रकाशित करने के अनुक्रम में यह पुस्तक अद्वितीय है। लेखक ने वर्तमान भाषा–मत के दोषों को उन्मूलन कर प्राचीन भारतीय आर्य ग्रन्थों की सहायता से इसे मत-मात्रा से उपर उठाकर भाषा – विद्या के स्थान तक पहुचाया है।
पश्चिम के सर्वमान्य भाषा – विदों के विभिन्न मत भी प्रायः उद्धृत किये गए हैं। जर्मन लेखकों का भाषा- विद्या-विषयक मिथ्याभिमान परीक्षित किया गया है और उसका खोखलापन दर्शाया गया है ।
नीरजस्तम,
सत्यवक्ता, तत्त्ववेत्ता, महाज्ञान–सम्पन्न आर्य विद्वान् मूल भाषा संस्कृत के क्यों उपासक थे, और विकृत, कुलषित अपभ्रंशों के क्यों विरोधी थे, यह तत्त्व इस ग्रन्थ के अध्ययन से स्पष्ट होगा ।₹150.00 -
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आर्य समाज का विशेष (80%) योगदान- Bhartiye Swatantrata Sangraam mein Arya Samaj ka vishesh (80%) yogadan.
एक तरफ आर्यसमाज के 80 % जमीनी बलिदानी और दूसरी तरफ केवल 20 % ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की मिलीभगत ! भला विचार तो करें कि आर्यसमाज के बलिदानियों के साथ कितना न्याय हुआ ? भारत के तथाकथित आधुनिक इतिहास की सारी गाथाएँ मोहनदास कर्मचन्द गांधी , जवाहरलाल नेहरू , सरदार वल्लभभाई पटेल , मोहम्मद अली जिन्ना जैसे नेताओं के ही इर्द गिर्द घूमती रही है और वही पढ़ी तथा सुनाई जाती है ।
इतिहास को तोड़ – मरोड़कर प्रस्तुत करने वाले चन्द इतिहासकारों ने आर्यसमाजियों के बलिदान को भुलाने का जो पाप किया है वह अक्षम्य है । लेकिन आर्यसमाज से जुड़े इतिहासकारों ने अपने प्रयासों द्वारा सच को प्रस्तुत करने का प्रयास भी किया है । मैं इस विषय पर विचार करता हूँ , तो यह मेरी समझ से घोर अन्याय है कि , हमारे बच्चों को आर्यसमाज के योगदान के बारे में कुछ नहीं बताया जाता बल्कि इसका उलटा उन्हें यही पढ़ाया और रटाया जाता है कि भारत को आजादी केवल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी ने ही दिलाई ।
यह तथ्य सच्चाई से कोसों दूर है । बच्चों को इस तरह का पाठ पढ़ाना अनैतिक होने के साथ – साथ उन्हें भ्रमित करना भी है । बिना 80 % आर्यसमाजी नेताओं और कार्यकर्त्ताओं के सहयोग के गांधी जी और नेहरू जी से तो ब्रिटिश सरकार बात भी नहीं करती थी । यह सत्य है कि – ” जिस विपक्ष के पास कोई बड़ी सामूहिक जन – सहयोग व ताकत न हो , उसे कोई सरकार नहीं सुनेगी । ” ( ” Any Goverment will not listen to oppostion which does not have a big majority support of masses . ” )
शुरू – शुरू में अंग्रेजी सरकार ने भी यही किया । तथाकथित कांग्रेसी नेता सरकार के आगे सिर पटकते रहे कि रौलेट एक्ट वापस ले लो पर किसी ने नहीं सुना । लेकिन जब इसके खिलाफ अमर हुतात्मा स्वामी श्रद्धानन्द जी ने दिल्ली चाँदनी चौक में जुलूस निकाला तो अंग्रेजी सरकार घबरा गई । गोरे सैनिकों ने जुलूस को रोकना चाहा लेकिन स्वामी श्रदानन्द ने अपना सीना तान दिया और गरज उठे गोरे सैनिकों पर- ‘ चलाओ अपनी संगीनें मेरा सीना खुला है । ‘ गोरे सैनिक निडर संन्यासी की सिंह गर्जना सुन दुबक गए । तब आन – बान – शान के साथ जुलूस बढ़ा जो आगे चलकर एक विराट सभा में परिवर्तित हो गया ।
₹250.00 -
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